रबिन्द्रनाथ टेगोर जयंती
Rabindranath Tagore Biography In Hindi
Biography Of Rabindranath Tagore in Hindi
रबीन्द्रनाथ टैगोर जीवनी
रबीन्द्र नाथ टैगोर एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होनें हर किसी के दिल में अपने लिए अमिट छाप छोड़ी है जिन्हें आज देश का बच्चा-बच्चा जानता है। रबीन्द्र नाथ टैगोर की ख्याति एक महान कवि के रुप में पूरे विश्व में फैली हुई है।वे न सिर्फ एक विश्वविख्यात कवि थे बल्कि वे एक अच्छे साहित्यकार, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकारस, चित्रकार, महान विचारक और दार्शनिक भी थे। रबीन्द्र नाथ टैगोर विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे जिन्हें गुरूदेव कहकर भी पुकारा जाता था।
भारत का राष्ट्र-गान रबीन्द्रनाथ टैगोर की ही देन है। रबीन्द्रनाथ टैगोर को बचपन से ही कविताएं और कहानियां लिखने का बेहद शौक था। इसके साथ ही उन्हें प्रकृति से भी बेहद प्रेम था। कई बार तो वे प्रकृति को देखते-देखते इसी में खो जाया करते थे। और कल्पना किया करते थे।
आपको बता दें कि भारत के महान साहित्यकार रबीन्द्रनाथ टैगोर ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रीय चेतना को आकार देने में अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा साल 1913 में, रबीन्द्र नाथ टैगोर को अपनी काव्य रचना ‘गीतांजलि’ के लिए साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया और यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले वे एशिया के पहले व्यक्ति थे।
वहीं भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ रूप से पश्चिमी देशों का परिचय और पश्चिमी देशों की संस्कृति से भारत का परिचय कराने में टैगोर ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका रही है और आमतौर पर उन्हें आधुनिक भारत का असाधारण सृजनशील कलाकार भी माना जाता है।
आज हम आपको महान कवि रबीन्द्रनाथ टैगोर की जन्म, शिक्षा, उनकी रचनाएं, उनके द्धारा किए गए महत्वपूर्ण काम और उनकी जीवन की उपलब्धियों के बारे में बताएंगे जिसे पढ़कर हर कोई प्रेरणा ले सकता है और अगर कोई इनके द्धारा बताए गए मार्ग पर चले तो वह निश्चित ही सफलता हासिल कर सकता है। तो आइए जानते हैं भारत के महान साहित्यकार रबीन्द्रनाथ टैगोर के बारे में –
रबीन्द्रनाथ टैगोर जन्म और परिवार
प्रारंभिक जीवन
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनके पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी थीं। वह अपने माँ-बाप की तेरह जीवित संतानों में सबसे छोटे थे। जब वे छोटे थे तभी उनकी माँ का देहांत हो गया और चूँकि उनके पिता अक्सर यात्रा पर ही रहते थे इसलिए उनका लालन-पालन नौकरों-चाकरों द्वारा ही किया गया। टैगोर परिवार ‘बंगाल रेनैस्सा’ (नवजागरण) के अग्र-स्थान पर था। वहां पर पत्रिकाओं का प्रकाशन, थिएटर, बंगाली और पश्चिमी संगीत की प्रस्तुति अक्सर होती रहती थी| इस प्रकार उनके घर का माहौल किसी विद्यालय से कम नहीं था।उनके सबसे बड़े भाई द्विजेन्द्रनाथ एक दार्शनिक और कवि थे। उनके एक दूसरे भाई सत्येन्द्रनाथ टैगोर इंडियन सिविल सेवा में शामिल होने वाले पहले भारतीय थे। उनके एक और भाई ज्योतिन्द्रनाथ संगीतकार और नाटककार थे। उनकी बहन स्वर्नकुमारी देवी एक कवयित्री और उपन्यासकार थीं। पारंपरिक शिक्षा पद्धति उन्हें नहीं भाती थी इसलिए कक्षा में बैठकर पढना पसंद नहीं था।
वह अक्सर अपने परिवार के सदस्यों के साथ परिवार के जागीर पर घूमा करते थे। उनके भाई हेमेंद्रनाथ उन्हें पढाया करते थे। इस अध्ययन में तैराकी, कसरत, जुडो और कुश्ती भी शामिल थे। इसके अलावा उन्होंने ड्राइंग, शरीर रचना, इतिहास, भूगोल, साहित्य, गणित, संस्कृत और अंग्रेजी भी सीखा। आपको ये जानकार हैरानी होगी कि औपचारिक शिक्षा उनको इतनी नापसंद थी कि कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में वो सिर्फ एक दिन ही गए।
अपने उपनयन संस्कार के बाद रविंद्रनाथ अपने पिता के साथ कई महीनों के भारत भ्रमण पर निकल गए। हिमालय स्थित पर्यटन-स्थल डलहौज़ी पहुँचने से पहले वह परिवार के जागीर शान्तिनिकेतन और अमृतसर भी गए। डलहौज़ी में उन्होंने इतिहास, खगोल विज्ञान, आधुनिक विज्ञान, संस्कृत, जीवनी का अध्ययन किया और कालिदास के कविताओं की विवेचना की।
रबिन्द्रनाथ टैगोर का विवाह
1883 में रबींद्रनाथ टैगोर ने मृणालिनी देवी से शादी की और पांच बच्चे पैदा किए। अफसोस की बात है कि उनकी पत्नी का 1902 में निधन हो गया था और बाद में उनकी दो संतान रेणुका (1903 में) और समन्द्रनाथ (1907 में) का भी निधन हो गया।रबिन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा
शिक्षा – रबिन्द्रनाथ टैगोर जन्म से ही, बहुत ज्ञानी थे, इनकी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के, बहुत ही प्रसिद्ध स्कूल सेंट जेवियर नामक स्कूल मे हुई . इनके पिता प्रारंभ से ही, समाज के लिये समर्पित थे . इसलिये वह रबिन्द्रनाथ जी को भी, बैरिस्टर बनाना चाहते थे . जबकि, उनकी रूचि साहित्य मे थी, रबिन्द्रनाथ जी के पिता ने 1878 मे उनका लंदन के विश्वविद्यालय मे दाखिला कराया परन्तु, बैरिस्टर की पढ़ाई मे रूचि न होने के कारण , 1880 मे वे बिना डिग्री लिये ही वापस आ गये |रबिन्द्रनाथ टैगोर की कैरियर
इंग्लैंड से वापस आने और अपनी शादी के बाद से लेकर सन 1901 तक का अधिकांश समय रविंद्रनाथ ने सिआल्दा (अब बांग्लादेश में) स्थित अपने परिवार की जागीर में बिताया। वर्ष 1898 में उनके बच्चे और पत्नी भी उनके साथ यहाँ रहने लगे थे। उन्होंने दूर तक फैले अपने जागीर में बहुत भ्रमण किया और ग्रामीण और गरीब लोगों के जीवन को बहुत करीबी से देखा। वर्ष 1891 से लेकर 1895 तक उन्होंने ग्रामीण बंगाल के पृष्ठभूमि पर आधारित कई लघु कथाएँ लिखीं।वर्ष 1901 में रविंद्रनाथ शान्तिनिकेतन चले गए। वह यहाँ एक आश्रम स्थापित करना चाहते थे। यहाँ पर उन्होंने एक स्कूल, पुस्तकालय और पूजा स्थल का निर्माण किया। उन्होंने यहाँ पर बहुत सारे पेड़ लगाये और एक सुन्दर बगीचा भी बनाया। यहीं पर उनकी पत्नी और दो बच्चों की मौत भी हुई। उनके पिता भी सन 1905 में चल बसे। इस समय तक उनको अपनी विरासत से मिली संपत्ति से मासिक आमदनी भी होने लगी थी। कुछ आमदनी उनके साहित्य की रॉयल्टी से भी होने लगी थी।
14 नवम्बर 1913 को रविंद्रनाथ टैगोर को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। नोबेल पुरस्कार देने वाली संस्था स्वीडिश अकैडमी ने उनके कुछ कार्यों के अनुवाद और ‘गीतांजलि’ के आधार पर उन्हें ये पुरस्कार देने का निर्णय लिया था। अंग्रेजी सरकार ने उन्हें वर्ष 1915 में नाइटहुड प्रदान किया जिसे रविंद्रनाथ ने 1919 के जलिआंवाला बाग़ हत्याकांड के बाद छोड़ दिया।
सन 1921 में उन्होंने कृषि अर्थशाष्त्री लियोनार्ड एमहर्स्ट के साथ मिलकर उन्होंने अपने आश्रम के पास ही ‘ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान’ की स्थापना की। बाद में इसका नाम बदलकर श्रीनिकेतन कर दिया गया।
अपने जीवन के अंतिम दशक में टैगोर सामाजिक तौर पर बहुत सक्रीय रहे। इस दौरान उन्होंने लगभग 15 गद्य और पद्य कोष लिखे। उन्होंने इस दौरान लिखे गए साहित्य के माध्यम से मानव जीवन के कई पहलुओं को छुआ। इस दौरान उन्होंने विज्ञानं से सम्बंधित लेख भी लिखे।
रबीन्द्रनाथ टैगोर की यात्रा
सन 1878 से लेकर सन 1932 तक उन्होंने 30 देशों की यात्रा की। उनकी यात्राओं का मुख्य मकसद अपनी साहित्यिक रचनाओं को उन लोगों तक पहुँचाना था जो बंगाली भाषा नहीं समझते थे। प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि विलियम बटलर यीट्स ने गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद का प्रस्तावना लिखा। उनकी अंतिम विदेश यात्रा सन 1932 में सीलोन (अब श्रीलंका) की थी।रबीन्द्रनाथ टैगोर की साहित्य
अधिकतर लोग उनको एक कवि के रूप में ही जानते हैं परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं था। कविताओं के साथ-साथ उन्होंने उपन्यास, लेख, लघु कहानियां, यात्रा-वृत्तांत, ड्रामा और हजारों गीत भी लिखे।रबीन्द्रनाथ टैगोर की संगीत और कला
एक महान कवि और साहित्यकार के साथ-साथ गुरु रविंद्रनाथ टैगोर एक उत्कृष्ट संगीतकार और पेंटर भी थे। उन्होंने लगभग 2230 गीत लिखे – इन गीतों को रविन्द्र संगीत कहा जाता है। यह बंगाली संस्कृति का अभिन्न अंग है। भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगीत, जो रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखे गए थे, भी इसी रविन्द्र संगीत का हिस्सा हैं।लगभग 60 साल की उम्र में रविंद्रनाथ टैगोर ने ड्राइंग और चित्रकला में रूचि दिखाना प्रारंभ किया। उन्होंने अपनी कला में विभिन्न देशों के शैली को समाहित किया।
रबीन्द्रनाथ टैगोर की सामाजिक जीवन
16 अक्तूबर 1905 को रवीन्द्रनाथ के नेतृत्व में कोलकाता में मनाया गया रक्षाबंधन उत्सव से 'बंग-भंग आंदोलन' का आरम्भ हुआ। इसी आंदोलन ने भारत में स्वदेशी आंदोलन का सूत्रपात किया। टैगोर ने विश्व के सबसे बड़े नरसंहारों में से एक जलियांवाला कांड (1919) की घोर निंदा की और इसके विरोध में उन्होंने ब्रिटिश प्रशासन द्वारा प्रदान की गई, 'नाइट हुड' की उपाधि लौटा दी। 'नाइट हुड' मिलने पर नाम के साथ 'सर' लगाया जाता है।मनुष्य और ईश्वर के बीच जो चिरस्थायी सम्पर्क है, उनकी रचनाओं के अन्दर वह अलग-अलग रूपों में उभर आता है। साहित्य की शायद ही ऐसी कोई शाखा हो, जिनमें उनकी रचना न हो - कविता, गान, कथा, उपन्यास, नाटक, प्रबन्ध, शिल्पकला - सभी विधाओं में उन्होंने रचना की। उनकी प्रकाशित कृतियों में - गीतांजली, गीताली, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, शिशु, शिशु भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, खेया आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेज़ी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा पूरे विश्व में फैली।
टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रवींद्र संगीत बाँग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी अधिकतर रचनाएँ तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं के अलग-अलग रंग प्रस्तुत करते हैं। अलग-अलग रागों में गुरुदेव के गीत यह आभास कराते हैं मानो उनकी रचना उस राग विशेष के लिए ही की गई थी। प्रकृति के प्रति गहरा लगाव रखने वाला यह प्रकृति प्रेमी ऐसा एकमात्र व्यक्ति है जिसने दो देशों के लिए राष्ट्रगान लिखा।
या कहानी के रुप में अपने लेखन के माध्यम से लोगों के मानसिक और नैतिक भावना को अच्छे से प्रदर्शित किया। आज के लोगों के लिये भी उनका लेखन अग्रणी और क्रांतिकारी साबित हुआ है। जलियाँवाला बाग नरसंहार की त्रासदी के कारण वो बहुत दुखी थे जिसमें जनरल डायर और उसके सैनिकों के द्वारा अमृतसर में 1919 में 13 अप्रैल को महिलाओं और बच्चों सहित बहुत सारे निर्दोष लोग मारे गये थे।
1901 में टैगोर ने पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित शांतिनिकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना सिर्फ पांच छात्रों को लेकर की थी। इन पांच लोगों में उनका अपना पुत्र भी शामिल था। 1921 में राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा पाने वाले विश्वभारती में इस समय लगभग छह हजार छात्र पढ़ते हैं। इसी के ईर्द-गिर्द शांतिनिकेतन बसा था। जहाँ उन्होंने भारत और पश्चिमी परंपराओं के सर्वश्रेष्ठ को मिलाने का प्रयास किया। उनके द्वारा स्थापित शांति निकेतन साहित्य, संगीत और कला की शिक्षा के क्षेत्र में पूरे देश में एक आदर्श विश्वविद्यालय के रूप में पहचाना जाता है। इंदिरा गाँधी जैसी कई प्रतिभाओं ने शान्तिनिकेतन से शिक्षा प्राप्त की है।
इंग्लैंड से वापस आने और अपनी शादी के बाद से लेकर सन 1901 तक का अधिकांश समय रविंद्रनाथ ने सिआल्दा (अब बांग्लादेश में) स्थित अपने परिवार की जागीर में बिताया। वर्ष 1898 में उनके बच्चे और पत्नी भी उनके साथ यहाँ रहने लगे थे। उन्होंने दूर तक फैले अपने जागीर में बहुत भ्रमण किया और ग्रामीण और गरीब लोगों के जीवन को बहुत करीबी से देखा। वर्ष 1891 से लेकर 1895 तक उन्होंने ग्रामीण बंगाल के पृष्ठभूमि पर आधारित कई लघु कथाएँ लिखीं।
वर्ष 1901 में रविंद्रनाथ शान्तिनिकेतन चले गए। वह यहाँ एक आश्रम स्थापित करना चाहते थे। यहाँ पर उन्होंने एक स्कूल, पुस्तकालय और पूजा स्थल का निर्माण किया। उन्होंने यहाँ पर बहुत सारे पेड़ लगाये और एक सुन्दर बगीचा भी बनाया। यहीं पर उनकी पत्नी और दो बच्चों की मौत भी हुई। उनके पिता भी सन 1905 में चल बसे। इस समय तक उनको अपनी विरासत से मिली संपत्ति से मासिक आमदनी भी होने लगी थी।
कुछ आमदनी उनके साहित्य की रॉयल्टी से भी होने लगी थी। सन 1921 में उन्होंने कृषि अर्थशाष्त्री लियोनार्ड एमहर्स्ट के साथ मिलकर उन्होंने अपने आश्रम के पास ही ‘ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान’ की स्थापना की। बाद में इसका नाम बदलकर श्रीनिकेतन कर दिया गया। रवीन्द्रनाथ टैगोर को गुरूदेव के नाम से भी जाना जाता था। भारत का राष्ट्रीय गान जन गण मन और बंगाल का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बाँग्ला की रचना रबीन्द्र नाथ टैगोर जी ने ही की थी। शान्तिनिकेतन की स्थापना रबीन्द्र नाथ टैगोर ने की थी।
रवीन्द्रनाथ टैगोर को सर की उपधि दी गइ थी लेकिन जलियाँवालाबाग हत्याकांड के बाद उन्होंने सर की उपाधि वापस कर दी थी। रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की काव्यरचना गीतांजलि के लिये उन्हे सन् 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) मिला भी दिया गया था। रवीन्द्रनाथ टैगोर जी एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति थे। गुरूदेव ने अपने अंतिम दिनों में चित्र बनाना शुरू किया था।
1913 में डॉ. आल्फ्रेड नोबेल फाउंडेशन ने रवीन्द्रनाथ टागोर के ‘गीतांजलि’ इस कविता संग्रह को साहित्य के लिए मिलने वाला नोबेल पुरस्कार प्रदान किया. नोबेल पुरस्कार मिला इसलिए रवीन्द्रनाथ की महिमा पुरे जग में फ़ैल गयी. जल्दही ‘गीतांजलि’ की विभिन्न परदेसी और भारतीय भाषा में अनुवाद हुए. गीतांजलि में के कविताओं का मुख्य विषय ईश्वर भक्ति होकर बहुत कोमल शब्दों में और अभिनव पध्दत से रवीन्द्रनाथ ने उसे व्यक्त कीया है.
रवीन्द्रनाथ के विभिन्न क्षेत्रों का कार्य देखकर अंग्रेज सरकार ने 1915 में उन्हें ‘सर’ ये बहोत सम्मान की उपाधि दी. पर इस उपाधि से रवीन्द्रनाथ अंग्रेज सरकार के कृतज्ञ नहीं हुए. 1919 में पंजाब में जालियनवाला बाग में अंग्रेज सरकार ने हजारो बेकसूर भारतीयों की गोलियां मारकर हत्या की तब क्रोधित हुए रवीन्द्रनाथ इन्होंने ‘सर’ इस उपाधि का त्याग किया.
रबीन्द्रनाथ टैगोर की राजनैतिक विचार
उनके राजनैतिक विचार बहुत जटिल थे। उन्होंने यूरोप के उपनिवेशवाद की आलोचना की और भारतीय राष्ट्रवाद का समर्थन किया। इसके साथ-साथ उन्होंने स्वदेशी आन्दोलन की आलोचना की और कहा कि हमें आम जनता के बौधिक विकास पर ध्यान देना चाहिए – इस प्रकार हम स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के समर्थन में उन्होंने कई गीत लिखे। सन 1919 के जलियांवाला बाग़ नरसिंहार के बाद उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दी गयी नाइटहुड का त्याग कर दिया। गाँधी और अमबेडकर के मध्य ‘अछूतों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल’ मुद्दे पर हुए मतभेद को सुलझाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।रबींद्रनाथ टैगोर निधन
उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 4 साल पीड़ा और बीमारी में बिताये। वर्ष 1937 के अंत में वो अचेत हो गए और बहुत समय तक इसी अवस्था में रहे। लगभग तीन साल बाद एक बार फिर ऐसा ही हुआ। इस दौरान वह जब कभी भी ठीक होते तो कवितायें लिखते। इस दौरान लिखी गयीं कविताएं उनकी बेहतरीन कविताओं में से एक हैं। लम्बी बीमारी के बाद 80 वर्ष की उम्र 7 अगस्त 1941 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।रबींद्रनाथ टैगोर की रचनाये
रवीन्द्रनाथ ठाकुर (7 मई 1861–7 अगस्त 1941), जिनको गुरुदेव दे नाम के साथ भी जाना जाता है, प्रसिद्ध बंगाली लेखक, संगीतकार, चित्रकार और विचारक थे। वे एकमात्र कवि हैं जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बाँग्ला' उनकी ही रचनाएँ हैं।गोरा (उपन्यास) -रबीन्द्रनाथ टैगोर
अनमोल भेंट/मुन्ने की वापसी - रबीन्द्रनाथ टैगोर
अनाथ - रबीन्द्रनाथ टैगोर
अनाधिकार प्रवेश - रबीन्द्रनाथ टैगोर
अपरिचिता - रबीन्द्रनाथ टैगोर
अवगुंठन - रबीन्द्रनाथ टैगोर
अन्तिम प्यार - रबीन्द्रनाथ टैगोर
इच्छापूर्ण/इच्छा पूर्ति - रबीन्द्रनाथ टैगोर
कवि और कविता - रबीन्द्रनाथ टैगोर
कवि का हृदय - रबीन्द्रनाथ टैगोर
कंचन - रबीन्द्रनाथ टैगोर
काबुलीवाला - रबीन्द्रनाथ टैगोर
खोया हुआ मोती - रबीन्द्रनाथ टैगोर
गूंगी रबीन्द्रनाथ - टैगोर
जीवित और मृत - रबीन्द्रनाथ टैगोर
तोता - रबीन्द्रनाथ टैगोर
धन की भेंट - रबीन्द्रनाथ टैगोर
नई रोशनी - रबीन्द्रनाथ टैगोर
पत्नी का पत्र - रबीन्द्र- नाथ टैगोर
प्रेम का मूल्य - रबीन्द्रनाथ टैगोर
पाषाणी - रबीन्द्रनाथ टैगोर
पिंजर - रबीन्द्रनाथ टैगोर
भिखारिन - रबीन्द्रनाथ टैगोर
यह स्वतन्त्रता/घर वापसी - रबीन्द्रनाथ टैगोर
विद्रोही - रबीन्द्रनाथ टैगोर
विदा - रबीन्द्रनाथ टैगोर
समाज का शिकार - रबीन्द्रनाथ टैगोर
सीमान्त - रबीन्द्रनाथ टैगोर
पड़ोसिन - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
संकट तृण का – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
आधी रात में - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
अतिथि - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
एक रात - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
पोस्टमास्टर - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मुसलमानी की कहानी - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
एक छोटी पुरानी कहानी - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
गिन्नी - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
संपादक - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
फूल का मूल्य - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
रबिन्द्रनाथ टैगोर की 10 कविताएँ
(Rabindranath Tagore Poems in Hindi)1. Rabindranath Tagore Poems in Hindi (मेरा शीश नवा दो - गीतांजलि (काव्य)
मेरा शीश नवा दो अपनीचरण-धूल के तल में।
देव! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू-जल में।
अपने को गौरव देने को
अपमानित करता अपने को,
घेर स्वयं को घूम-घूम कर
मरता हूं पल-पल में।
देव! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू-जल में।
अपने कामों में न करूं मैं
आत्म-प्रचार प्रभो;
अपनी ही इच्छा मेरे
जीवन में पूर्ण करो।
मुझको अपनी चरम शांति दो
प्राणों में वह परम कांति हो
आप खड़े हो मुझे ओट दें
हृदय-कमल के दल में।
देव! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू-जल में।
-रवीन्द्रनाथ टैगोर
2. Rabindranath Tagore Poems in Hindi - (होंगे कामयाब)
होंगे कामयाब,
हम होंगे कामयाब एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन।
हम चलेंगे साथ-साथ
डाल हाथों में हाथ
हम चलेंगे साथ-साथ, एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन।
3. Rabindranath Tagore Poems in Hindi - (चल तू अकेला!)
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,
जब सबके मुंह पे पाश..
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,
हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!
तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,
मनका गाना गूंज तू अकेला!
जब हर कोई वापस जाय..
ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय…
4. Rabindranath Tagore Poems in Hindi - (नहीं मांगता)
नहीं मांगता, प्रभु, विपत्ति से,
मुझे बचाओ, त्राण करो
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान, करो।
नहीं मांगता दुःख हटाओ
व्यथित ह्रदय का ताप मिटाओ
दुखों को मैं आप जीत लूँ
ऐसी शक्ति प्रदान करो
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।
कोई जब न मदद को आये
मेरी हिम्मत टूट न जाये।
जग जब धोखे पर धोखा दे
और चोट पर चोट लगाये –
अपने मन में हार न मानूं,
ऐसा, नाथ, विधान करो।
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।
नहीं माँगता हूँ, प्रभु, मेरी
जीवन नैया पार करो
पार उतर जाऊँ अपने बल
इतना, हे करतार, करो।
नहीं मांगता हाथ बटाओ
मेरे सिर का बोझ घटाओ
आप बोझ अपना संभाल लूँ
ऐसा बल-संचार करो।
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।
सुख के दिन में शीश नवाकर
तुमको आराधूँ, करूणाकर।
औ’ विपत्ति के अन्धकार में,
जगत हँसे जब मुझे रुलाकर–
तुम पर करने लगूँ न संशय,
यह विनती स्वीकार करो।
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान, करो।
5. Rabindranath Tagore Poems in Hindi - (मन जहां डर से परे है)
“मन जहां डर से परे है
और सिर जहां ऊंचा है;
ज्ञान जहां मुक्*त है;
और जहां दुनिया को
संकीर्ण घरेलू दीवारों से
छोटे छोटे टुकड़ों में बांटा नहीं गया है;
जहां शब्*द सच की गहराइयों से निकलते हैं;
जहां थकी हुई प्रयासरत बांहें
त्रुटि हीनता की तलाश में हैं;
जहां कारण की स्पष्ट धारा है
जो सुनसान रेतीले मृत आदत के
वीराने में अपना रास्*ता खो नहीं चुकी है;
जहां मन हमेशा व्*यापक होते विचार और सक्रियता में
तुम्*हारे जरिए आगे चलता है
और आजादी के स्*वर्ग में पहुंच जाता है
ओ पिता
मेरे देश को जागृत बनाओ”
– रवीन्द्रनाथ टैगोर
6. Rabindranath Tagore Poems in Hindi - (आमि / बहु वासनाय प्राणपणे चाइ...। )
विविध वासनाएँ हैं मेरी प्रिय प्राणों से भी
वंचित कर उनसे तुमने की है रक्षा मेरी;
संचित कृपा कठोर तुम्हारी है मम जीवन में।
अनचाहे ही दान दिए हैं तुमने जो मुझको,
आसमान, आलोक, प्राण-तन-मन इतने सारे,
बना रहे हो मुझे योग्य उस महादान के ही,
अति इच्छाओं के संकट से त्राण दिला करके।
मैं तो कभी भूल जाता हूँ, पुनः कभी चलता,
लक्ष्य तुम्हारे पथ का धारण करके अन्तस् में,
निष्ठुर ! तुम मेरे सम्मुख हो हट जाया करते।
यह जो दया तुम्हारी है, वह जान रहा हूँ मैं;
मुझे फिराया करते हो अपना लेने को ही।
कर डालोगे इस जीवन को मिलन-योग्य अपने,
रक्षा कर मेरी अपूर्ण इच्छा के संकट से।।
7. Rabindranath Tagore Poems in Hindi - (प्रेमे प्राणे गाने गन्धे आलोके पुलके...।)
प्रेम, प्राण, गीत, गन्ध, आभा और पुलक में,
आप्लावित कर अखिल गगन को, निखिल भुवन को,
अमल अमृत झर रहा तुम्हारा अविरल है।
दिशा-दिशा में आज टूटकर बन्धन सारा-
मूर्तिमान हो रहा जाग आनंद विमल है;
सुधा-सिक्त हो उठा आज यह जीवन है।
शुभ्र चेतना मेरी सरसाती मंगल-रस,
हुई कमल-सी विकसित है आनन्द-मग्न हो;
अपना सारा मधु धरकर तब चरणों पर।
जाग उठी नीरव आभा में हृदय-प्रान्त में,
उचित उदार उषा की अरुणिम कान्ति रुचिर है,
अलस नयन-आवरण दूर हो गया शीघ्र है।।
8. Rabindranath Tagore Poems in Hindi - (अनसुनी करके)
अनसुनी करके तेरी बात
न दे जो कोई तेरा साथ
तो तुही कसकर अपनी कमर
अकेला बढ़ चल आगे रे–
अरे ओ पथिक अभागे रे ।
देखकर तुझे मिलन की बेर
सभी जो लें अपने मुख फेर
न दो बातें भी कोई क रे
सभय हो तेरे आगे रे–
अरे ओ पथिक अभागे रे ।
तो अकेला ही तू जी खोल
सुरीले मन मुरली के बोल
अकेला गा, अकेला सुन ।
अरे ओ पथिक अभागे रे
अकेला ही चल आगे रे ।
जायँ जो तुझे अकेला छोड़
न देखें मुड़कर तेरी ओर
बोझ ले अपना जब बढ़ चले
गहन पथ में तू आगे रे–
अरे ओ पथिक अभागे रे ।
9. Rabindranath Tagore Poems in Hindi - विपदाओं से रक्षा करो, यह न मेरी प्रार्थना
युगजीत नवलपुरी द्वारा अनुवादित
विपदाओं से रक्षा करो-
यह न मेरी प्रार्थना,
यह करो : विपद् में न हो भय।
दुख से व्यथित मन को मेरे
भले न हो सांत्वना,
यह करो : दुख पर मिले विजय।
मिल सके न यदि सहारा,
अपना बल न करे किनारा; –
क्षति ही क्षति मिले जगत् में
मिले केवल वंचना,
मन में जगत् में न लगे क्षय।
करो तुम्हीं त्राण मेरा-
यह न मेरी प्रार्थना,
तरण शक्ति रहे अनामय।
भार भले कम न करो,
भले न दो सांत्वना,
यह करो : ढो सकूँ भार-वय।
सिर नवाकर झेलूँगा सुख,
पहचानूँगा तुम्हारा मुख,
मगर दुख-निशा में सारा
जग करे जब वंचना,
यह करो : तुममें न हो संशय।
10. Rabindranath Tagore Poems in Hindi - (लेगेछे अमल धवल पाले मन्द मधुर हावा)
लगी हवा यों मन्द-मधुर इसनाव-पाल पर अमल-धवल है;
नहीं कभी देखा है मैंने
किसी नाव का चलना ऐसा।
लाती है किस जलधि-पार से
धन सुदूर का ऐसा, जिससे-
बह जाने को मन होता है;
फेंक डालने को करता जी
तट पर सभी चाहना-पाना !
पीछे छरछर करता है जल,
गुरु गम्भीर स्वर आता है;
मुख पर अरुण किरण पड़ती है,
छनकर छिन्न मेघ-छिद्रों से।
कहो, कौन हो तुम ? कांडारी।
किसके हास्य-रुदन का धन है ?
सोच-सोचकर चिन्तित है मन,
बाँधोगे किस स्वर में यन्त्र ?
मन्त्र कौन-सा गाना होगा ?
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